अनुकृति उपाध्याय

ये एक बीहड़ दौर है।  बाहर-भीतर के भय हमें संत्रस्त कर रहे हैं, अनिश्चितता का घुन वर्तमान और भविष्यत की लकड़ी में घर कर गया…