सिमोन

अदिति शर्मा
अदिति शर्मा दालान सुरेंद्र उपाध्याय प्रतिभा संधान में विशिष्ट उल्लेख प्राप्त कवयित्री हैं। उनकी कविताएँ यहाँ पढ़ें।
- सिमोन
बाइबल नहीं तुम्हारा लिखा
क्योंकि धर्म में कुछ श्रेष्ठ नहीं हमारे लिए
कहते हैं एक उम्र के बाद पुरुष की कठोरता टूट जाती है
वह तलाशता है अपने दंभ को सहलाने वाला हाथ
और स्त्रियाँ न झुकने का फैसला करती हैं
जिनकी कमर पर आजीवन घन बजा हो
किसी कंस्ट्रक्शन साइट पर
कोई दुर्घटना हो और चौथे माले से
ढहने लगे सब ईंटें
ऐसे बरसते थे शब्द
जैसे स्वादिष्ट भोजन के बाद गले में अटका रह गया हो
एक सूक्ष्म-सा रेशा
एक कोमल-सी पलक मुड़कर धँस गयी हो आँख में
शूल की तरह
बातों का अंत
यूँ सोच पर बरसते रहे कोड़े लगातार
जो करना था उसे सोच में इतना झुठलाया कि
झूठ सच हो गया
और सच ये है कि
पिता से प्रेम पर चर्चा नहीं हो सकती
रात भर बाथरूम से
पानी के बहने की आवाज़ आई
रात भर खून बहा नालियों में
दो टाँगों के बीच सिमटता रहा अस्तित्व
और मृत्यु फिर मुस्कुराई
तुम जानती हो सिमोन
कॉलेज में तुम्हें पढ़कर
तुम्हारी तस्वीर देखी नेट पर
और अपना कवर लगा लिया
तुम कोई सहेली लगी
तुम्हारे नाम से छद्म नारीवाद के ताने भी सुने
लेकिन गर्व से
तुम मेरा गर्व रही
दुनिया की हर महत्त्वपूर्ण घटना से दूर
ज़मीं में कहीं भीतर
कहीं भी उपस्थित न होकर
मैंने खुद को उगते हुए देखा
2. जूता
आदमी के बारे में
उसके जूतों से जानने की कोशिश
किसने कहा होगा सबसे पहले ये
क्यों इस बात को इतने लोगों ने इतनी बार दोहराया
जूतों से तो पैरों का नाप भी पता नहीं चलता किसी का ठीक-ठीक
कितने बढ़ते पैरों में ढीला जूता होता है
कि हर साल नहीं खरीदे जा सकते नए जूते
कितनों में दरारें
कि बरसात में यूँ भी ख़राब हो जाना है उन्हें
ढीले या टूटे हुए जूते संवेदना तो जगाते हैं
पर सबसे बड़ी मार पैरों में कस गए जूतों की होती है
और उनके बारे में कभी नहीं पता चलता कुछ भी
जिनके पैरों में नहीं हैं जूते
जूतों से कुछ पता नहीं चलता
कुछ लोग जिनके पास और कुछ नहीं बस एक तराज़ू है
आदमी की औक़ात ज़रूर नाप लेते हैं
कितने भारी हथियारों से कितनी मामूली चीज़ को तौलते हैं।